डायरी का आखिरी
सफ़ा
मलिन पड़ते धागे
और
करीब आते दिखते
मगर
दूर जाते तुम
रहना तय था
बिछुड़ना भी
बस
वक्त से नहीं किया
कभी
कोई करार
अब उसने खोली है
अपनी
हिसाब वाली डायरी
तुम
मुंह छुपाए फिरते हो
मैं नजरें बचाए
कौन पूछे अब
किसे
ठहराया गया कुसूरवार
जो आता दिखा था
वो ही
जाता पाया गया
वक्त
तू ही निकला बेईमान....।
तस्वीर...उम्र सी लंबी सड़क और मेरे कैमरे की
बहुत सुन्दर तस्वीर के साथ सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तस्वीर के साथ सुन्दर रचना
ReplyDeleteइन हालात में ,वक्त के अलावा दोष दें भी किसे?सुन्दर भावपूर्ण पंक्तियाँ,
ReplyDeleteअब उसने खोली है
ReplyDeleteअपनी
हिसाब वाली डायरी
तुम
मुंह छुपाए फिरते हो
मैं नजरें बचाए,...
बहुत सुन्दर बहुत सरल भाव और वक्त का बेईमान खेल अद्भुत । अच्छी लगी आभार
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण
ReplyDeleteरहना तय था
ReplyDeleteबिछुड़ना भी
बस
वक्त से नहीं किया
कभी
कोई करार ...
वक्त से कोई करार हो ही कहाँ पाता है ... हर कोई उससे आगे निकल जाने की सोचता है ...
खुबसुरत रचना के लिये आभार.......
ReplyDeleteसादर..
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ।
ReplyDeleteसुंदर चित्र और सुंदर कविता
ReplyDeleteBahut sunder panktiyaan..sunder rachna ..sunder chitr !!
ReplyDeleteरहना तय था
ReplyDeleteबिछुड़ना भी
बस
वक्त से नहीं किया
कभी
कोई करार...ati sundar ...
वाह!सजीव लेखन
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