Friday, August 22, 2014

करती हूं उसका इंतजार.....


हर शाम मैं
करती हूं उसका इंतजार

जो रोज कहता है मुझसे
'मैं बेहद प्‍यार करता हूं तुम्‍हें'
और सुबह
घर से नि‍कलते वक्‍त
वि‍दाई वाले चुंबन के साथ
अपनी जुबां पर उगाए
तेज नाखूनों को
मेरी पीठ पर गड़ा
कोई ऐसी बात कह जाता है
जि‍सका दंश
बि‍च्‍छू के जहर से भी जहरीला लगे

हर शाम मैं
करती हूं उसका इंतजार

जो चुभन और कड़वाहट के
मकड़जाल में उलझा कर
मुस्‍कराता हुआ
हवाई चुंबन उछाल
मेरे ही आंखों के सामने से
नि‍कल जाता है
और मैं ताजी हवा एक झोंके को
छटपटाती रह जाती हूं

हर शाम मैं
करती हूं उसका इंतजार

जो थका-मांदा घर आता है
मेरे बालों में अपनी नाक घुसा
एक गहरी-लंबी सांस खींचता है
और चाय का प्‍याला हाथ में थाम
टीवी ऑन कर
कि‍सी भी चलती बहस में
खुद को शामि‍ल कर लेता है
बि‍ना ये सोचे, कि‍
मेरे बदन से उठने वाली महक
खारे आंसुओं की है या पसीने की

हर शाम मैं
करती हूं उसका इंतजार

जो देर रात मुझ पर
अथाह प्‍यार बरसाता है
मेरे माथे को चूमकर
अपने मन-मंदि‍र की देवी बताता है
और मेरी चुभन को
मन के चोट को सहलाए बि‍ना
अपनी अंकशायि‍नी बना
प्रगाढ़ नि‍द्रा में लीन हो जाता है

हर शाम मैं
करती हूं उसका इंतजार

और जागती आंखों से सपना बुनती हूं
कि‍ कल नहीं मि‍लेगा कोई नया दंश
वो जाते वक्‍त
प्रेम के तीन शब्‍दों के शब्‍दों के अलावा
और कुछ नहीं कहेगा
मेरी पीठ में अब कुछ नहीं चुभेगा
मेरे मन से कुछ रि‍सेगा नहीं दि‍न-रात
और ये हर शाम होता है कि‍
करती हूं उसका इंतजार
एक ताजी हवा वाली सुबह की आस लि‍ए।

तस्‍वीर...एक ऐसी ही शाम की..

13 comments:

  1. waah! baat to wahi hai, jo aapne kawita me kahi, maine kathaa me....
    same-pinch!!!!
    :)

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  2. रश्मि जी ...अनकहे को यूँ सरलता से कह जाने में आप कुशल हैं ..बहुत ही सुंदर ...

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  3. बहुत सुंदर रचना
    कृपया यहाँ भी पधारें
    http://ramaajays.blogspot.jp/

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  4. कड़वा सच. सुंदर रचना

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  6. जो थका-मांदा घर आता है
    मेरे बालों में अपनी नाक घुसा
    एक गहरी-लंबी सांस खींचता है
    और चाय का प्‍याला हाथ में थाम
    टीवी ऑन कर
    कि‍सी भी चलती बहस में
    खुद को शामि‍ल कर लेता है
    बि‍ना ये सोचे, कि‍
    मेरे बदन से उठने वाली महक
    खारे आंसुओं की है या पसीने की..... भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  7. फिर भी इंतज़ार … शह बढ़ाना ही है

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