Saturday, July 12, 2014

आषाढ़ का चांद....


दुनि‍या के चि‍तेरे ने
कूची से अपने
रंग दि‍या
आसमान को
कहीं गाढ़ा नीला
तो कहीं है
बदरंग सा धब्‍बा

उस नीले आसमान की
छाती पर
टंका है आज
पीला उदास चांद
अपनी मरि‍यल
रौशनी के साथ

आषाढ़ के बूंदों को तो
नि‍गल लि‍या
सूरज के प्रखर
ताप ने
अब ढलती रात को
काले बादलों का ग्रास
बन गया है पीला चांद

क्‍या अबकी सावन
बरसेगा झमाझम
ऐ पीले चांद
तुम न आना आज
आसमान पर
कहीं ऐसा न हो कि‍
सावन रूठ जाए......


तस्‍वीर...साभार गूगल

1 comment:

  1. बहुरत खूब ...
    चाँद न आये तो भी मेख कहाँ मानते हैं ... प्यासा हो छोड़ जाते हैं धरती को ...

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