Friday, June 27, 2014

मन की जमीन........


यादें चुभ रही हैं बदन में सुईयों की तरह.....दर्द दि‍ल के बरास्‍ते जि‍स्‍म में उतर आया है....अब चुभन है...दर्द है...तड़प है मगर यकीन भी है.....तुम पर...खुद पर....जाने कब तक

घि‍र आए हैं काले बादल आसमान में..दक्षिण-पश्‍चि‍म कोने में कौंधती रही बार-बार बि‍जली.....मुझे मालूम है....ये नि‍राश करेंगी उन आंखों को जो आषाढ़ में मानसून की आस लि‍ए तक रहे होंगे आसमान को...काले बादलों को...जो छलावा है

तुम भी तो बन गए हो बादल...आस वाले काले बादल...जो भरमाते हैं....लुभाते हैं....और आंखों में इंतजार छोड़ दूर नि‍कल जाते हैं। उम्‍मीद भरी नि‍गाहें तकती हैं राह....कोई आए....या संदेशा ही भि‍जवाए....न सही..एक आवाज बहुत है....

ना.....कुछ भी नहीं.....अभी छंटेगा काला बादल और साफ..नीला आकाश होगा आंखों के आगे...अब कह दो तुम...कि‍ क्‍या करूं.....आस भरे रहूं आंखों में या सूखने दूं मन की जमीन........

मत भरमाओ मुझको इन काले बादलों की तरह....

3 comments:

  1. badal bhi barsenge aur aas bhi puri ho jayegi ....bahut sundar

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  2. आस कभी निराश नहीं करती ,जरूर बरसेंगे ये बादल,सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. आस कभी निराश नहीं करती ,जरूर बरसेंगे ये बादल,सुन्दर अभिव्यक्ति

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