छोड़ दिया उसे मैंने
जिससे
सबसे ज्यादा थी
मोहब्बत हमें
दरअसल
प्यार कहता है
झुक जाओ
महबूब की कदमों में
ये बंदगी है
गुलामी नहीं
मगर
क्या हो, जब
ताड़ सी ऐंठ भरी है
प्यार वाले
हिस्से में
झुकता है कोई
तो फौरन
दूसरा
सतर खड़ा हो जाता है
इसलिए
कर दिया बेदखल
उसे ही
दिल की जागीर से
अब
उन आंखों में
भरी है हैरत
और
इन आंखों में
बेपनाह मोहब्बत
जाओ तुम अब
अपनी राह
हम आसमान की किताब में
कुछ नए हर्फ़
चस्पां करें.........
my photography
बिलकुल सही !
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (08-04-2014) को "सबसे है ज्यादा मोहब्बत" (चर्चा मंच-1576) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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श्रीराम नवमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब...प्यार झुकता नहीं...और प्यार के लिए झुकना चाहिए भी नहीं...
ReplyDeleteबहुत ही सरल, सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशानदार कृति , आदरणीय रश्मि जी धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे लिंक पे !
ReplyDeleteनवीन प्रकाशन -: साथी हाँथ बढ़ाना !
नवीन प्रकाशन -: सर्च इन्जिन कैसे कार्य करता है ? { How the search engine works ? }