Saturday, March 29, 2014

एक उफान.......




एक उफान था
उफना..गि‍रा
नील कर गया हथेली
अब दर्द
देखता है मुंह मेरा
मेरी मुस्‍कराहट
तोलती है उसे
कहता है
आओ..बि‍न बुलाए नहीं हम
चोटि‍ल मन पर
तन का बोझ धरते हैं
नीलेपन को टहोकते हैं
दर्द उतारते हैं
सीने में
और नींद में सपनों की
रूई धुनते हैं
उफ़ान..ऐसे ही होते हैं.....

my photography....

3 comments:

  1. बेवजह उफान नहीं उठता मन में ..कोई न कोई बात मन में गहरे उतर कर ही ऐसे ही बाहर आती है ..
    बहुत सुन्दर

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  2. ............. अनुपम भाव संयोजन

    Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ..कल्पना नहीं कर्म :))

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!!

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