मैं
मंत्रमुग्ध नहीं
मंत्रबिद्ध हो जाती हूं
जब
ओम की तरह
गूंजती है कानों में
तुम्हारी ध्वनि
मैं
ध्यान में होती हूं
हो रहा होता है
खुद से साक्षात्कार
जब एक गहरी आवाज
खींच ले जाती है
मुझे अनंत में.....
हां....
लीन होना
ऐसा ही होता है
चाहे ईश्वर में हो
या किसी इंसान में
प्रेम....ऐसा ही होता है......
तस्वीर..साभार गूगल
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया-
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई ---
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteनई पोस्ट आम आदमी !
नई पोस्ट लघु कथा
मैं
ReplyDeleteध्यान में होती हूं
हो रहा होता है
खुद से साक्षात्कार
जब एक गहरी आवाज
खींच ले जाती है
मुझे अनंत में.....
बेहतर भावाभिव्यक्ति .....!!!
उम्दा रचना, बहुत खूब लिखा है .
ReplyDeletehttp://himkarshyam.blogspot.in/