Monday, January 27, 2014

तुम नहीं होते......


वो वक्‍त
कब होता है
जब मैं 'मैं ' होती हूं
और वहां
तुम नहीं होते......

कहो न फि‍र
मैं तुम्‍हें याद कब करूं
कैसे लि‍खूं
आंसू भीगे ख़त

तुम तो तब भी
पास होते हो
जब मैं
अलगनी पर
गीले कपड़े
पसार रही होती हूं
या
साग-सब्‍जी का
हि‍साब कर रही होती हूं

फि‍र कैसे
पतंग पर
तेरे नाम एक संदेश लि‍खूं
और ढील दूं डोर को
तुम तक पहुंचने के लि‍ए

तुम्‍हें पता नहीं
मैं...यानी तुम
क्‍या अब भी
दूरी कोई है हमारे दरमि‍यां....

3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार आपका।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति.

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  3. सुन्दर प्रस्तुति.

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