हां
वो तुम ही थे
जो मेरी हर सांझ को
उदास किया करते थे
जो सर्द....कोहरे भरी
तवील रातों को
जाने कहां से छुपकर
आवाज दिया करते थे
हां
वो तुम ही थे
जो मेरे भीतर
एक अबूझ सी छटपटाहट
भरा करते थे
नहीं जानती थी तब
उदासी की वजह
बस बेवजह की उदासी के
गले लग
खूब रोया करती थी
पूछती थी खुद से
बार-बार
कि आखिर क्या कमी है
क्या चाहिए और
इस जिंदगी से
हां
वो तुम ही थे
जिसकी आस में डूबकर
खामोश खाली निगाहों से
चांद का
घटना-बढ़ना तकती थी
अब आके जब
तुम मिले हो, भर गई मैं
एक सुकून तारी है
जिस्म-ओ-जां में
चाहती हूं अब छलकूं नहीं
भरे कलश सी रहूं
हां
वो तुम ही थे, तुम ही हो
जिसकी आवाज के सहारे
एक आकृति रची मैंने
और अब साकार हुई
तुमसे मिलकर...तुम्हें पाकर..
तस्वीर....उस वक्त की ..जो गुजर गया
गहरा अहसास।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeletegahre bhaw ..sundar ahsas
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-12-2013) को "वो तुम ही थे....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1469" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!!
- ई॰ राहुल मिश्रा
अनिभूति की सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनई पोस्ट चाँदनी रात
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
bahut sundar...pyar say bhari rachna
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDelete