ढलती रात तक तारी रहे
सुकून भरी सहर
ऐसा खुशगवार दिन
हर दिन के
नसीब में नहीं होता
सुबह का खिला फूल
शाम ढलते मुरझा जाता है
चमकता सूरज
अपनी लालिमा के साथ
दूर पहाड़ों के पीछे बुझ जाता है
यूं भी होता है कि मोहब्बत
इम्तहानों से रोज गुजरकर
थक कर एक दिन
अपनी ही बाहों में
चेहरा छुपा कर सो जाता है
सुकून भरे दिन-रात
देने का वादा करने वाला
प्यारे से घोंसले में सो रही
नन्हीं सी चिरैया को
प्यार जताते हुए खुद ही उड़ा देता है......
तस्वीर...ढलती शाम और मरे कैमरे की नज़र..
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....
ReplyDeleteयूं भी होता है कि मोहब्बत
ReplyDeleteइम्तहानों से रोज गुजरकर
थक कर एक दिन
अपनी ही बाहों में
चेहरा छुपा कर सो जाता है....dil ko chhoo gayi aapki yeh panktiyan..bohat khoob
वाह !!! भावो को सुंदर शब्द दिए है,,,
ReplyDeleteRECENT POST : पाँच( दोहे )
खूबसूरत तस्वीर और सुंदर पंक्तियां
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
यूं भी होता है कि मोहब्बत
ReplyDeleteइम्तहानों से रोज गुजरकर
थक कर एक दिन
अपनी ही बाहों में
चेहरा छुपा कर सो जाता है
मुहब्बत है तो ऐसा अक्सर ही होता है ... पर फिर भी रहती है मुहब्बत तारो ताज़ा सुबह की धूप की तरह ...