Tuesday, August 27, 2013

चि‍रैये को खुद ही उड़ा देता है...


ढलती रात तक तारी रहे
सुकून भरी सहर 
ऐसा खुशगवार दि‍न
हर दि‍न के
नसीब में नहीं होता

सुबह का खि‍ला फूल
शाम ढलते मुरझा जाता है
चमकता सूरज 
अपनी लालि‍मा के साथ
दूर पहाड़ों के पीछे बुझ जाता है

यूं भी होता है कि मोहब्‍बत
इम्‍तहानों से रोज गुजरकर
थक कर एक दि‍न
अपनी ही बाहों में
चेहरा छुपा कर सो जाता है

सुकून भरे दि‍न-रात
देने का वादा करने वाला
प्‍यारे से घोंसले में सो रही
नन्‍हीं सी चि‍रैया को
प्‍यार जताते हुए खुद ही उड़ा देता है......


तस्‍वीर...ढलती शाम और मरे कैमरे की नज़र..

6 comments:

  1. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....

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  2. यूं भी होता है कि मोहब्‍बत
    इम्‍तहानों से रोज गुजरकर
    थक कर एक दि‍न
    अपनी ही बाहों में
    चेहरा छुपा कर सो जाता है....dil ko chhoo gayi aapki yeh panktiyan..bohat khoob

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  3. वाह !!! भावो को सुंदर शब्द दिए है,,,

    RECENT POST : पाँच( दोहे )

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  4. खूबसूरत तस्वीर और सुंदर पंक्तियां

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  5. बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
    कभी यहाँ भी पधारें
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/

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  6. यूं भी होता है कि मोहब्‍बत
    इम्‍तहानों से रोज गुजरकर
    थक कर एक दि‍न
    अपनी ही बाहों में
    चेहरा छुपा कर सो जाता है

    मुहब्बत है तो ऐसा अक्सर ही होता है ... पर फिर भी रहती है मुहब्बत तारो ताज़ा सुबह की धूप की तरह ...

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