रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Friday, August 16, 2013
चांद का माथा....
दूर आकाश में दूधिया चांद को देख कहती हूं बहुत ही खूबसूरत हो तुम और झुककर चूम लेती हूं अपने चांद का माथा ये मेरा चांदउससे ज्यादा है खूबसूरत जो मेरी बाजुओं में सर रखकर हर रात चैन से सोता है....... तस्वीर....साईकिल चलाते अभिरूप
चाँद के मुखड़े से झर रही है चाँदनी।..खूबसूरत।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ,,
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
संक्षिप्त सुंदर कविता।।।
ReplyDeleteहमारी दुआ है 'इस चाँद' की चाँदनी पहुंचेगी 'उस चाँद' तक ...सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteहमारी दुआ है 'इस चाँद' की चाँदनी पहुंचेगी 'उस चाँद' तक ...सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeletenice line ji
ReplyDeletenice line ji
ReplyDeletenice line ji
ReplyDeleteachha likha
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