दर्द बेइंतहा दर्द......
एक दर्द है
जो न
दबता है
न उभरता है
बस
टीसता रहता है
सारे जिस्म में
इस मन में
न कह पाती हूं
न सह पाती हूं
एक कसक
सीने में होती है
वजह पता नहीं
आंखों को
बस वो रोती है
महसूस करती है
दर्द
बेइंतहा दर्द
ये किसने दिया
अब तो याद भी नहीं
तस्वीर- साभार गूगल
मर्मस्पर्शी अभिवयक्ति ....
ReplyDeleteufff....marmik
ReplyDeleteझकझोर देनेवाली रचना
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति...
ReplyDeletedil ko chhu gayi apki Rachna..Aabhar
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर