Monday, May 27, 2013

मेरी आस में तू...मेरी अरदास में तू....

उदासी की छठी किस्‍त
* * * *

सच कहते थे तुम...आवारा हवा का झोंका हो....जाने कि‍तनी दूर नि‍कल गए....चले गए मुझे रूलाकर....भरमाकर.....सब अस्‍त-व्‍यस्‍त कर के...

आज जेठ की इस तपती दोपहरी में हुई जोरों की बारि‍श.....बहुत तेज बहती रही हवा......एक आंधी ये हवाएं लेकर आईं...दूजी तुम्‍हारी याद ने कहर बरपाया

खूब बरसा पानी....तर हुआ धरती का सीना....भीगा मेरा भी तन....मगर ये मन.....सूखी रेत सा झरता रहा ..अंदर-अंदर......तपता...सूखता...जलता सा मन

मैंने मेघों से भी कहा.....दे दो न संदेशा उनको....कि अब न तरसाएं, बहुत हुआ...अब आ भी जाएं.....मगर लगता है मेरे मन के थार की तपि‍श से मेघ भी वि‍लुप्‍त हो गए...... खो गए .....उस खोए को ढूंढते-ढूंढते...

देखो न....बारि‍श ने पत्‍तों से सारा धूल धो-पोंछकर साफ कर दि‍या...सारा छत..सारे फूल...सभी पत्‍ति‍यां...नि‍खर आई हैं...खि‍ली-खि‍ली सी........पूरी धरा खि‍लखि‍ला रही है.....और तुम्‍हारी कमी को और तीव्रता से महसूस करती....उतनी ही उदास..मुरझाई.. मैं

 मैं तो बहती हुई झरना थी न......तेरा साथ मि‍ला तो बन गई नदी......तुम कहते थे मुझको......मैं तीस्‍ता नदी सी ही चंचल हूं.......देख जाओ आकर एक बार....झील बन गई अब.....खो गई नदी सागर के सीने में जाकर....

इतना ठहराव.....न मुझे पसंद न तुम्‍हें......फि‍र क्‍यों बांध गए मुझे ऐसे अग्‍नि‍पाश से.....कि जल जाउं....राख हो जाउं......मगर मुक्‍त न हो पाउं कभी......

न सताओ जानां.....एक बार तो आवाज दे दो.....कह दो तुम....बस एक बार....... कि तुम भी तड़प रहे हो मेरे लि‍ए......

मेरी आस में तू...मेरी अरदास में तू......ये बता दे जानां....मेरे दि‍ल के सि‍वा और कहां है तू्.....

तस्‍वीर---बारि‍श के बाद मेरे घर के छत की

10 comments:

  1. बहुत सुन्‍दर और सार्थक रचना आभार.

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  2. आज के मेघ भी तो कहाँ सन्देश देते हैं,वह समय तो गया,ऐसी विरह वेदना भी इस इंस्टेंट युग में कहाँ है,तू नहीं और सही ,और नहीं और सही
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के (चर्चा मंच-1259) सबकी अपनी अपनी आशाएं पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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  4. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के सभी के अपने अपने रंग रूमानियत के संग ......! चर्चा मंच अंक-1259 पर भी होगी!
    सादर...!

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  5. इतना ठहराव.....न मुझे पसंद न तुम्‍हें......फि‍र क्‍यों बांध गए मुझे ऐसे अग्‍नि‍पाश से.....कि जल जाउं....राख हो जाउं......मगर मुक्‍त न हो पाउं कभी......

    वाह!!!!!!!!!!!! उद्गार प्रस्तुतिकरण की विलक्षण शैली

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  6. बहुत ही प्रभावी ! विरह विदग्ध हृदय की वेदना को बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है ! बहुत सुंदर प्रस्तुति !

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  7. बहुत खूब,आपकी रचनाएँ दिल को छू गईं.

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