उदासी की तीसरी किस्त
* * * *
इंतजार में पथरा सी गई हैं आंखें......देर रात थककर पलकों ने आखिर कर ही लिया था रात में एक-दूजे का आलिंगन....
छोटी सी नींद में ही एक सपना पलकों पे आ बैठा...शायद दिल की चाह, सपने में तब्दील हो गई.....देखा..तुम आ गए हो पास....मैं नींद में डूबी हूं....
तुमने आवाज लगाई......ऐ मेरी एंजल.........उठो न...बहुत थक गया हूं....जरा पास आओ न....बस एक टाइट हग दे दो.......थोड़ी देर यूं ही रहने दो.......मुझे छुपा लो अपनी बाहों में...मैं तुरंत सो जाउंगा....बस पांच मिनट मेरे पास रहो...... फिर तुम चली जाना...
आह.....खुल गई नींद...ये तुम ही थे न....या कोई छलावा था। सूनी रात और पागलों सी तुम्हें तलाशती मैं.....सिसकियां हिचकियों में बदल गई.....तुम्हारी तस्वीर को बेतहाशा चूमा और सीने से लगा लिया। मगर.....कहां मिला सुकून ....सब तुम्हारे साथ ही चला गया ये लगता है अब तो
जानां.....ऐसा क्या हो गया है....ना कोई संदेशा..ना कोई फोन...अब मन में कई बुरे से ख्याल आ रहे हैं....मन आशंका की लहरों पर झूल रहा है... लगातार कसकता है सीने में कुछ
आओ न........देखो...खुली है मेरी बाहें....आओ......कस लूं तुम्हें इनमें....इस गुंजलिका से कहीं नहीं, कभी नहीं जाने दूंगी तुम्हें बाहर.....मैं 'मोरे' में कस कर रखूंगी तुम्हें........ जानते हो मोरे में रखा धान या अनाज तीन वर्ष तक खराब नहीं होता..... मैं बाहों का ऐसा मोरा बनाउंगी, जिसे ताउम्र नहीं खोला जा सके.........
एक दिन के लिए भी ओझल न होने दूंगी इन आंखों से तुम्हें....
कसम है तुम्हें मेरे प्यार की.....आ भी जाओ.....कि जी न सकेंगे अब हम......
तस्वीर....मेरे कैमरे की नजर मोरे पर, जिसमें अनाज सुरक्षित रखा जाता है गांवों में...
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इंतजार में पथरा सी गई हैं आंखें......देर रात थककर पलकों ने आखिर कर ही लिया था रात में एक-दूजे का आलिंगन....
छोटी सी नींद में ही एक सपना पलकों पे आ बैठा...शायद दिल की चाह, सपने में तब्दील हो गई.....देखा..तुम आ गए हो पास....मैं नींद में डूबी हूं....
तुमने आवाज लगाई......ऐ मेरी एंजल.........उठो न...बहुत थक गया हूं....जरा पास आओ न....बस एक टाइट हग दे दो.......थोड़ी देर यूं ही रहने दो.......मुझे छुपा लो अपनी बाहों में...मैं तुरंत सो जाउंगा....बस पांच मिनट मेरे पास रहो...... फिर तुम चली जाना...
आह.....खुल गई नींद...ये तुम ही थे न....या कोई छलावा था। सूनी रात और पागलों सी तुम्हें तलाशती मैं.....सिसकियां हिचकियों में बदल गई.....तुम्हारी तस्वीर को बेतहाशा चूमा और सीने से लगा लिया। मगर.....कहां मिला सुकून ....सब तुम्हारे साथ ही चला गया ये लगता है अब तो
जानां.....ऐसा क्या हो गया है....ना कोई संदेशा..ना कोई फोन...अब मन में कई बुरे से ख्याल आ रहे हैं....मन आशंका की लहरों पर झूल रहा है... लगातार कसकता है सीने में कुछ
आओ न........देखो...खुली है मेरी बाहें....आओ......कस लूं तुम्हें इनमें....इस गुंजलिका से कहीं नहीं, कभी नहीं जाने दूंगी तुम्हें बाहर.....मैं 'मोरे' में कस कर रखूंगी तुम्हें........ जानते हो मोरे में रखा धान या अनाज तीन वर्ष तक खराब नहीं होता..... मैं बाहों का ऐसा मोरा बनाउंगी, जिसे ताउम्र नहीं खोला जा सके.........
एक दिन के लिए भी ओझल न होने दूंगी इन आंखों से तुम्हें....
कसम है तुम्हें मेरे प्यार की.....आ भी जाओ.....कि जी न सकेंगे अब हम......
तस्वीर....मेरे कैमरे की नजर मोरे पर, जिसमें अनाज सुरक्षित रखा जाता है गांवों में...
3 comments:
preservation of love!!!
:-)
anu
.आजकल तो मोरे गेहूं से से छलक रहे हैं ...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
बढिया, बहुत बढिया
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