Monday, February 11, 2013

मुझसे प्‍यार है...


प्रेमावेग से थरथराती जुबां
लफ्ज चुन नहीं पाती
शब्‍द बुन नहीं पाती
नि‍कलते हैं केवल कुछ अस्‍फुट से स्‍वर

क्‍या हुआ
जो लब खामोश रहे
दि‍ल ने तो कह दि‍या न

जानां, तुम्‍हें भी मुझसे प्‍यार है...

तस्‍वीर--साभार गूगल

7 comments:

  1. भावातिरेक का शिखर मौन ही होता है .न जुबां को दिखाई देता है ,न निगाहों से बात


    होती है .बढ़िया भाव रचना .भाव क्षणिका .

    ram ram bhai
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    सोमवार, 11 फरवरी 2013
    अतिथि कविता :सेकुलर है हिंसक मकरी -डॉ वागीश

    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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  2. sahi bat ......kuch bolne ke liye shabdoon ki jarurat kahaan ?

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  3. प्रेम में शब्द नहीं भाव काम आते हैं ... सही कहा ...

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  4. प्रेम-भावों से पूर्ण सुंदर रचना

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  5. प्रेमावेग से थरथराती जुबां
    लफ्ज चुन नहीं पाती
    शब्‍द बुन नहीं पाती
    नि‍कलते हैं केवल कुछ अस्‍फुट से स्‍वर

    क्‍या हुआ
    जो लब खामोश रहे
    दि‍ल ने तो कह दि‍या न

    जानां, तुम्‍हें भी मुझसे प्‍यार है...पूरी कविता ही चू रही हो जैसे मधुसिक्त रस से

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