मुरझाई सी अमराई में
है गुनगुन
भौरों की आहट
खिले बौर अमिया में
मंजरी की सुगंध छाई
धूप ने पकड़ा
प्रकृति का धानी आंचल
देख सुहानी रूत
फूली सरसों, पीली सरसों
इतराती है जौ की बालियां
गया शिशिर
धूप खिली,झूमीं वल्लरियां
फुनगी पर सेमल की
निखरी हर कलियां
महुआ की डाल पर
अकुलाया है मन
चिरैया की पांख पर
उतर आया
स्मृति का मदमाता
केसरिया बसंत
ठूंठ से फूटती
नवपल्ल्व
टेसू से टहक नारंगी लौ
नव कोंपल ने आवाज लगाई
छोड़ मन की पीड़ा
देख ले तू मुड़कर एक बार
राही
धरा पर बसंत ऋतु आई
15 फरवरी को दैनिक भास्कर में छपी कविता
तस्वीर--साभार गूगल
सुन्दर कविता|
ReplyDeleteमदमाती कविता-
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरेया ||
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeletesundar... basant chhalak aaya..
ReplyDeleteमदमस्त करती बहुत ही प्यारी रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति .नारी खड़ी बाज़ार में -बेच रही है देह ! संवैधानिक मर्यादा का पालन करें कैग
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता ...
ReplyDeleteशुभकामनायें ...
आपकी पोस्ट की चर्चा 17- 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है कृपया पधारें ।
ReplyDeleteवसंत के सम्पूर्ण वैभव को चित्रित करती बहुत सुन्दर रचना ! शुभकामनाएं !
ReplyDeleteठूंठ से फूटती
ReplyDeleteनवपल्ल्व
टेसू से टहक नारंगी लौ
नव कोंपल ने आवाज लगाई
छोड़ मन की पीड़ा
देख ले तू मुड़कर एक बार
राही
धरा पर बसंत ऋतु आई---बहुत सुंदर
latest postअनुभूति : प्रेम,विरह,ईर्षा
atest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
वसंत की बात ही कुछ और है
ReplyDeleteवासंती अनुभूति!
ReplyDeleteसुंदर कविता , सुंदर भाव
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