सुनो....
अब भी मैं
थमी हूं
वहीं...उस पल में
जिस वक्त
तुमने कहा था
बस....
तुम रहना
हमेशा रहना
साथ
मुझे मुकम्मल
होने देने के लिए.....
क्या तब तुमने
सुना था
मेरी चुप्पियों को,
देखा था
भावनाओं को
मुखरित होते
कि
मैं हूं ही इसलिए
पास तुम्हारे
कि तुम्हें मुकम्मल कर
खुद को भी
पा सकूं........
मैं हूं ही इसलिए
ReplyDeleteपास तुम्हारे
कि तुम्हें मुकम्मल कर
खुद को भी
पा सकूं........
..सच बिना मुकम्मल हुए किसी को मुकम्मल नहीं कर सकता कोई ..
बहुत बढ़िया रचना
प्यार और समर्पण मौन मुखरित
ReplyDeleteतुम्हें मुकम्मल कर
ReplyDeleteखुद को भी
पा सकूं........
बहुत खूब
सुन्दर भाव-
ReplyDeleteआंदोलित कर गए -
वाह वाह क्या बात है, मुलाक़ात मुस्काय |
नयनों में मधुमास है, चीं चीं चुप चुबलाय |
चीं चीं चुप चुबलाय, भरोसा आश्वासन है |
सर्वश्रेष्ठ यह युगल, वृक्ष भी इन्द्रासन है |
दोनों एकाकार, स्वयं के छवि की ख्वाहिश |
बहती प्रेमधार, आज फिर होगी बारिश ||
ACHHE SHBD
ReplyDeleteसुन्दर मनहर प्रस्तुति .भाव अर्थ की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है रचना में .
ReplyDeleteVah kya khoob anubhutio ka charam aur param bindu
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
बहुत बढ़िया ख्वाहिश श्रेष्ठ रचना मैं हूं ही इसलिए
ReplyDeleteपास तुम्हारे
कि तुम्हें मुकम्मल कर
खुद को भी
पा सकूं........
बहुत खूब....
ReplyDeleteबढिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत निजी अहसास का अति सुन्दर वर्णन।
ReplyDeleteबहुत खूब,,लाजबाब अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleterecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
बहुत खूब,लाजबाब अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleterecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
मैं हूं ही इसलिए
ReplyDeleteपास तुम्हारे
कि तुम्हें मुकम्मल कर
खुद को भी
पा सकूं........
सशक्त रचना अनुपम भाव लिये. रश्मि जी बहुत सुंदर.
लोहड़ी, पोंगल, मकर संक्रांति और बिहू के पर्व पर शुभकामनायें.