Monday, January 14, 2013

ज्‍यों झरते हों हरसिंगार...


कि‍सी की आंख से
मोती बन
झरे
तो क्‍या झरे.....
झरना है तो
झरो
इन आंखों से तुम
ऐसे
ज्‍यों झरते हों हरसिंगार...

रंग भरना
आता है तो
क्‍यों हो
कागज की तलाश
भरना है तो
भरो
इंद्रधनुष सा कि‍सी के
खाली जीवन का कैनवास....

10 comments:

  1. भरना है तो
    भरो
    इंद्रधनुष सा कि‍सी के
    खाली जीवन का कैनवास..
    अनुपम ....

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  2. भरना है तो
    भरो
    इंद्रधनुष सा कि‍सी के
    खाली जीवन का कैनवास.

    वाह क्या बात कही है।

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  3. सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है

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  5. ✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
    ♥सादर वंदे मातरम् !♥
    ♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿


    रंग भरना
    आता है तो
    क्‍यों हो
    कागज की तलाश ?

    भरना है तो
    भरो
    इंद्रधनुष सा कि‍सी के
    खाली जीवन का कैनवास...!!

    बहुत सुंदर कविता है ...

    रश्मि जी
    मन को सुकून देती रचना के लिए आभार !



    हार्दिक मंगलकामनाएं …
    लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !

    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿

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  6. सुंदर भाव संयोजन...

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