Thursday, November 22, 2012

हवाओं की अलगनी

देखो
चांद के माथे जा चि‍पका है
वो अनुत्‍तरित सवाल
जो मुझसे पूछने को तुमने
हवाओं की अलगनी में टांग रखा था....
क्‍या नहीं जानते तुम
कुछ सवालों के जवाब नहीं होते
और कई बार
लोग गलि‍यों के फेरे भी डालते हैं
बस...यूं ही..आदतन
अब चांद भी हैरान है
अपने माथे एक नया दाग देखकर
सुनो
कह दो उससे
मेरे सवाल को ले परेशान न हो
दागदार चांद भी सबको प्‍यारा है
और
बि‍ना जवाब दि‍ए भी
कई बार
सवाल अलगनी में झूलते रहते हैं
क्‍योंकि मन ही मन
चुप्‍पी का राज जानते हैं.......

7 comments:

  1. उम्दा एवं भावपूर्ण रचना | बहुत खूब |

    मेरी नई पोस्ट-गुमशुदा

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  2. SACH HAI.... KUCHH SWALO KE JAWAB NAHIN HOTE.....

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  3. SAHI HAI... KUCHH SWALO KE JAWAB NAHIN HOTE.....

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  4. बेहद खूबसूरत रचना
    अरुन शर्मा - www.arunsblog.in

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  5. मन,सवाल और चुप्पी के इस ऊहापोह में
    चांद बेकार ही पिसता है दाग लिए,औरों के

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