लेकर तुम्हारी आंखों से
आंसू का एक कतरा
मिला दूं अपने
उन आंसुओं में
जो सदियों से बह रहे हैं
और जिन्हें
सदियों तक बहना है
अनवरत
क्योंकि....ये हैं
औरत के आंसू
जिनका कोई ठौर नहीं होता
न दामन...न कांधा किसी का
नायाब नहीं, बेकार हैं ये
क्योंकि
औरतों की फितरत में हैं
आंसू बहाना...
शायद मर्द की आंखों से निकले
एक कतरे से
इसकी कीमत बढ़ जाए
इसलिए
तुम्हारी आंखों से निकले
एक कतरे की
जरूरत है औरत को.....
तुम्हारी आंखों से निकले
ReplyDeleteएक कतरे की
जरूरत है औरत को.....
लाजबाब प्रस्तुति,,,,रश्मि जी,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,
बिना दुख दर्द के ये ज़िन्दगी अच्छी नही लगती
ReplyDeleteमुझे इन आसूँओं से दुश्मनी अच्छी नही लगती
बहुत सुन्दर रचना ये शेर आपकी इस रचना के नाम।
---शायद आपको पसंद आये---
ReplyDelete1. Google Page Rank Update
2. ग़ज़लों के खिलते गुलाब
आपके ब्लॉग से CRTL+A करके सब स्लेक्ट और CRTL+C से कापी हो जाता है कृप्या तकनीक दृष्टा पर दी गयी नयी विधि प्रयोग करें।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
ReplyDeleteतुम्हारी आंखों से निकले
ReplyDeleteएक कतरे की
जरूरत है औरत को.....lajawaab sundar
शायद मर्द की आंखों से निकले
ReplyDeleteएक कतरे से
इसकी कीमत बढ़ जाए
इसलिए
तुम्हारी आंखों से निकले
एक कतरे की
जरूरत है औरत को.....
Khoobsurat Rachna
रश्मि जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'रूप-अरूप' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 7 अगस्त को 'औरत के आंसू...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव