Tuesday, June 5, 2012

.......छोड़ दूं ?


आसमान तक पहुंचते नहीं
हाथ मेरे
तो क्‍या चांद पाने की
ख्‍वाहि‍श छोड़ दूं ..... ?
छुपा लेते हैं अश्‍कों को
रेत भी दामन की मानिंद
तो कि‍सी दामन को पाने की
ख्‍वाहि‍श छोड़ दूं .....?
आसमां को झुकाना मुमकि‍न नहीं
रेत समाते नहीं मुठठि‍यों में
हसरतें गर न पहुंचे मंजि‍ल तलक
तो क्‍या जीने की ख्‍वाहि‍श छोड़ दूं ....?

15 comments:

  1. आसमां को झुकाना मुमकि‍न नहीं
    रेत समाते नहीं मुठठि‍यों में
    हसरतें गर न पहुंचे मंजि‍ल तलक
    तो क्‍या जीने की ख्‍वाहि‍श छोड़ दूं ....?

    बहुत खूब,,,,,बेहतरीन रचना,,,,,

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

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  2. बहुत ही खुबसुरत रचना ...........
    ख्वाहिशे यु ही नही छोड़ी जाती /
    पत्थरों से डर कर राहे मोड़ी नही जाती /
    अरमान जीवन के पुरे करना है बस ,
    ठान ली तो दिल की उम्मीदे तोड़ी नही जाती //

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  3. बहुत ही खुबसुरत रचना ...........
    ख्वाहिशे यु ही नही छोड़ी जाती /
    पत्थरों से डर कर राहे मोड़ी नही जाती /
    अरमान जीवन के पुरे करना है बस ,
    ठान ली तो दिल की उम्मीदे तोड़ी नही जाती //

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  4. waah ...adbhut ...
    bahut sundar abhivyakti ....
    shubhkamnayen...

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  5. प्रेरक
    साधु-साधु
    अतिसुन्दर

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  6. ख्वाहिशें हमेशा ही ज़िंदा रहनी चाहिए ....
    काफी सुंदर रचना... बधाई !!

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  7. "हर किसी को मुकम्बल जहां नहीं मिलता
    किसी को ज़मीन तो किसी को आसमां नहीं मिलता"

    मगर इसका मतलब यह थोड़ी की ज़मीन या असामान न मिलने के चक्करों में इंसान जीना ही छोड़ दे...

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  8. सच कहा है ... चाह हो तो रास्ता भी निकल आता है ... ये सब भी मुमकिन हो जाता है ... सार्थक आह्वान करते शब्द ...

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  9. बिल्‍कुल सही कहा आपने ... बेहतरीन ।

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  10. सूना है ख्वाहिशें रास्ता बना लेती हैं....

    सादर.

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  11. ख्वाहिशें हैं तो जिंदगी है

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  12. आसमां को झुकाना मुमकिन नहीं
    --------तो क्या जीने की ख्याहिश छोड दूं
    हरगिज़ नहीं,’सपनों की कश्ती को बहने दो,
    आशाओं के चप्पु से जरा उसे हिला तो दो’

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  13. ख्वाहिशों को छोड़ देंगे तो फिर जियेंगे कैसे?
    सुंदर रचना...बधाई

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