रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Thursday, March 1, 2012
तुम्हारी छांव....
समय की कड़ी धूप में तुम
शीतल छांव से लगते हो...
छूट गया जो बचपन में
मेरे वो प्यारे गांव से लगते हो...
जीवन की विसंगतियों में उलझकर
जब प्राण पखेरू सा हो जाता है
मुझको जीवन पाठ पढ़ाते
आंगन वाले पीपल के
ठांव से लगते हो.....
बहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई
ReplyDeleteघनी छाँव के नीचे ठांव सुकून देती है !
ReplyDeletebhut khub
ReplyDelete