लाऊंगी कहां मैं जुदाई का हौसला
क्यों इस कदर मेरे करीब आ रहे हो तुम?
मेरी हर धड़कन, हर सांस में शामिल हो मगर
मेरे हाथों की इन लकीरों में कहां हो तुम?
तेरा बनना तो नामुमिकन है इस जिंदगी में
क्यों मुझसे ऐसे वफा निभा रहे हो तुम?
उल्फत में तेरी हो जाऊंगी बरबाद
क्यों इश्क के जज्बे को भड़का रहे हो तुम?
तुम्हारी यह कविता मुझे बेहद पसंद है। वाकई बहुत ही प्यारी कविता है।
ReplyDeleteबढ़िया.
ReplyDeletekyaa baat hai.....bahut sunder tareeke se apni majbuuri aur chaahat ke bhaav parkat kiye hai
ReplyDeleteबहुत अच्छी आपकी रचना ...रचना में कोई नक्कासी नहीं की गई है..मन के भावों किसी बच्चे की तरह ईमानदारी से परोसा गया है...बधाई
ReplyDeletebahut khoob rashmi ji....shikyat ka ye andaj bhi khoob hai.
ReplyDeletebhut he sunder aur sehaj rachna
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