Monday, January 21, 2008

कहां हो तुम

मेरी रूह,
मेरी धड़कन,
मेरी हर सांस में शामिल हो मगर
मेरे इन हाथों की लकीरों में
कहां हो तुम

2 comments:

  1. इस बात से भगवान हमें इसलिए दूर रखता है कि इसमें हमारी भलाई है!

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  2. ... बहुत सुन्दर ... हमें वसीम बरेलवी साहब का एक शेर याद आ रहा है ...

    मैं उसका हो नहीं सकता ये मत बताना उसे
    लकीरें हाथ की अपने वो सबा जला लेगा

    रश्मि, आपने बहुत अच्छी बात कही है जो रास्ते में रोक रोक कर ध्यान बंटती है ...

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