केले के उन हरे सघन पत्तों पर
अनवरत बरसती बूंदों का राग है
हर बरस इस मौसम में बस एक ही बात सोचती हूं
क्या कोई होगा जो मेरी तरह यूं ही
बारिश को महसूस करता होगा...
क्या उसके अंदर भी
जंगल में बारिश देखने की चाह उगती होगी
क्या मेरी तरह वो भी छत पर भीगता होगा
कितने तो ख्याल हैं
बारिश से बदलती धरा के अनगिनत रंग और
माटी से उठती सोंधी गंध है
ये कैसी अनजानी सी पीड़ा है
कि पहाड़ पर बारिश से बजती टीन की छत भी जैसे
किसी अनदेखे को पुकारती लगती है
मेरे लिए कोई है क्या इस दुनिया में
जो यूं बारिश को आत्मा से महसूस करता होगा...
3 comments:
सुन्दर सृजन
वाह! एक कवि मन ऐसा ही होता है। यह 'और' जानने की इच्छा, मन को सदा गति में रखता है। सच कहूँ तो बेचैन रहता है। सबकुछ जानने का मन करता है। आदि। कवि...
सुन्दर रचना
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