अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है आज। कब और क्यों शुरू किया गया, इसकी चर्चा अब बेमानी है क्योंकि खुद महिलाएं कहती हैं कि हमारे लिए साल का एक दिन क्यों ? हर दिन महिला दिवस है , और सच पूछिए तो सुबह के छह बजे से रात के ग्यारह तक हर दिन महिला दिवस होता है, क्योंकि महिलाओं के बिना घर का कार्य ही नहीं पूरा होता। यह कामकाजी और घरेलु, दोनों पर समान रूप से लागू होता है।
बहरहाल, हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन एक थीम निर्धारित की जाती है। इस वर्ष की थीम है - ''प्रेस फॉर प्रोग्रेस''। हर शहर और कुछ गांवों में भी आज के दिन महिला दिवस का आयोजन होता है और ऐसे आयोजनों से बात यह निकलकर आती है कि लड़ाई अभ्ाी भी जारी है- स्त्री का अपने मौलिक अधिकारों के लिए, अपने साथ हो रहे अनुचित व्यवहार के लिए, समाज में समान अधिकार के लिए। साथ ही प्राकृतिक रूप से एक स्त्री होने के शारीरिक कोमलता का दंड भुगतने के लिए भी। फिर भी हम मान सकते हैं कि यह संक्रमण काल है। बदलाव की आहट आ रही है।
एक तरफ प्रतिदिन अखबारों में स्त्री प्रताड़ना, बलात्कार और घरेलु अत्याचार की खबरें होती हैं तो दूसरी तरफ बेटियों के कामयाबी के झंडे गाड़ने की खबरें भी सुर्खियां बटोरती हैं। बेटियों की सफलता की एक खबर हजारों लड़कियों के मन में पल रहे हौसले को उड़ान देती है तो दूसरी तरफ लाखों मां-पिता मन ही मन स्वीकारते हैं कि बेटियां किसी से कम नहीं। उसे सही दिशा दें, तो वह सभी वैसी उम्मीदें पूरी करने की क्षमता रखतीं है जो किसी बेटे से करते आए हैं लोग। स्वालंबन के क्षेत्र में चाहे वह सेना हो या एयरफोर्स, खेल, राजनीति से लेकर सभी क्षेत्र में महिलाएं काम कर रही हैं और बेहतर प्रदर्शन कर रहीं हैं।
एक सच यह भी है कि पहली बार लीक तोड़ने वाली महिला या समाज के बंधे-बंधाए ढर्रे को तोड़कर बाहर निकलने वाली महिलाओं को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, समाज के ताने सुनने पड़ते हैं मगर वो एक उदाहरण बन जाती हैं। हम अपने आसपास ऐसी साहसी महिलाओं को देखते हैं और मन ही मन सराहना करते हैं।
मगर अब वक्त आ गया है कि सोच बदली जाए और इसके सहारे समाज, फिर देश। इसके लिए जरूरी है कि बदलाव की शुरूआत घर से हो। स्त्रियां अपने साथ हो रहे अत्याचार को सहे नहीं, उसे सामने लाए। दोषी को सजा मिले। इसके लिए अपने अधिकार की, कानून की जानकारी जरूरी है। शिक्षा पहली प्राथमिकता हो, फिर तो स्त्री सीख लेगी चलना, फिर दौड़ना। घर में बेटे-बेटी के लालन-पालन में कोई भेदभाव न हो। बच्चियों को मनचाही उड़ान भरने की स्वतंत्रता मिले। बुराईयों के खिलाफ आवाज उठाने वाली महिलाओं को परिवार और समाज का सहयोग मिले। सबसे बड़ी बात, स्त्री शरीर को इज्जत के साथ न जोड़कर एक इंसान के रूप में देखना चाहिए।
एक बात और, महिला अधिकार और बराबरी की बात केवल साल के एक दिन क्यों उठाया जाए। बहुत आवश्यक है कि महिलाएं प्रत्येक दिन अपने अधिकारों के लिए सजग रहे। न खुद अपने, बल्िक आसपास की औरतों की समस्याओं को समझे, निराकरण करे और विश्वास करें कि वह भी मानव हैं, उनका अधिकार पुरूषों से कम नहीं। जिस दिन यह समानता आ जाएगी, महिला दिवस एक पर्व के समान मनाया जाएगा।
8 मार्च 2018 को 'इंडियन पंच' के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित
8 मार्च 2018 को 'इंडियन पंच' के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित
1 comment:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अरे हुजूर वाह ताज बोलिए : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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