बाँस...जिसे आप अब कह सकते हैं घास....बाँस ऐसा पौधा है जो किसी भी वातावरण में तेज़ी से बढ़ता है इसकी उम्र साठ वर्षों की होती है.... जब फूल आते हैं तो पूरे झुरमुट में एक साथ खिलते हैंऔर ख़त्म भी हो जाते हैंं।
इसे वेणु भी कहते हैं...कृष्ण की वेणु.....जब बाँस का नया तना निकलता है तो इसे काट लिया जाता है। इसे बंसकरैल कहते है, जिसे सब्ज़ी की तरह खाया जाता ह और अचार भी लगता है।
जानते हैं आप ....अनुमान लगाया जाता है कि रामायण में जिस जड़ी का संजीवनी के रूप में उल्लेख है, वह बाँस से ही मिला था। वंशलोचन प्रसिध्द आयुर्वेदिक दवा है । बाक़ी के उपयोग तो सब जानते ही हैं...पैदा होने के बाद से मरने तक बाँस की कोई न कोई वस्तु हमारे पास होती है।
और शादीब्याह में बाँस की पूजा का विधान है क्योंकि इसे वंश वृद्धि का प्रतीक माना जाता है, शुभ है क्योंकि कहते हैं जहाँ बाँस होता है वहाँ बुरी आत्माएँ नहीं आती।
हमारे गाँव वाले घर के पास भी बाँसबारी था.... ......इस बैम्बू ट्री का फेंगशुुुई मेें खूब प्रयोग है।
1 comment:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अनजाने कर्म का फल “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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