Wednesday, January 31, 2018

जाने कहाँ गयी वो


जाने कहाँ गयी
वो
जो मेरे साथ रहती थी
नहीं देखा
बहुत दिनों से 
नाज़ुक कोंपलों पर
ऊँगलियाँ फिराते
कबूतरों के झुंड को
धप्प से कूदकर डराते
रात को
तारों भरे आकाश में
नक्षत्रों को झूठ-मूठ दौड़ाते
जाने कहाँ गयी
वो
जो मेरे साथ रहती थी
हर मौसम, हर सुबह
हर शाम से प्यार था उसको
कभी बारिश को तरसती
कभी गरमियों से
क़दमताल करती
और यह ठंड !
इसे तो बाहों में जकड़ती थी
हर बरस कहती
कुहासे भरी सुबह में
मुँह से भाप निकालते
ओ जाड़े के मौसम
तुम मुझे बहुत पसंद हो
अब तो सब मौसम
एक सा लगता है
जाने कहाँ गयी
जो यह सब कहती थी
और मेरे साथ रहती थी ।

4 comments:

Sweta sinha said...

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

Sudha Devrani said...

वाह!!!!
बहुत सुन्दर....

अपर्णा वाजपेयी said...

बहुत सुन्दर रचना । उसे खोजना ही पडेगा । आपके भीतर ही कंही छुप तो नहीं गयी ।
प्यारी कविता ।
सादर

शुभा said...

वाह!!बहुत खूब।