.बरसात के बाद
उजली
खिली-खिली सी धूप
आंगन में
हाथ-हाथ भर उग आए
घास
और उस पर मंडराती
पीली-काली पंखों वाली तितली
और
स्वच्छ आकाश पर
अठखेलियां करता
छोटी-छोटी चिड़ियों का झुंड.......
सब जाना सा...पहचाना सा लगता है
शायद हर बरसात के बाद
प्रकृति ऐसी ही दिखती है
खिली सी...उजली सी
मगर थोड़ी मायूस सी
और मैं....
जैसे बरसों से
एक जगह
एक घर में
पीले-सफेद दरवाजों वाले चौखट में
जैसे जड़ दी गई हूं
नक्काशी कर उकेरे
एक फूल की तरह
जिसे मौसम के परिवर्तन को
महसूसने के अलावा
कुछ और नहीं आता.....
7 comments:
और मैं....
जैसे बरसों से
एक जगह
एक घर में
पीले-सफेद दरवाजों वाले चौखट में
जैसे जड़ दी गई हूं
नक्काशी कर उकेरे
एक फूल की तरह
जिसे मौसम के परिवर्तन को
महसूसने के अलावा
कुछ और नहीं आता.....
वाह इन पंक्तियों ने सब कुछ कह दिया
सुन्दर भाव.
Rajesh kumari जी से सहमत !
साडा चिड़ियां दा चंबा वे
असां हुण उड़ जाणा
आपकी रचना पढ़कर पंजाबी लोगगीत की ये पंक्ितयां याद हो आईं
बरसात के बाद का सुन्दर मनोहारी प्रस्तुति ..
बहुत सुन्दर
एक फूल की तरह
जिसे मौसम के परिवर्तन को
महसूसने के अलावा
कुछ और नहीं आता.....
नये प्रतीकों से रचित भावपूर्ण रचना आभार
सुन्दर रचना
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