Sunday, April 24, 2016

अमर सागर झील : रांची से रेत के शहर तक – 6

खूबसूरत अमरसागर लेक 

बड़ा बाग़ से नि‍कल हम चले कुलधरा की ओर। रास्‍ते में हमें मि‍ला अमरसागर लेक। जैसलमेर से सात कि‍लोमीटर पश्‍चि‍म दि‍शा में है अमरसागर जि‍सका नि‍मार्ण महारावल अमरसिंह  ने 1748 में कराया था। अमर सागर झील के तट पर स्थित अमर सिंह पैलेस एक सुंदर शाही महल है। यह झील पत्थर के नक़्क़ाशीदार जानवरों के कई मुखौटों से घिरा है ,जिन्हें शाही परिवार का संरक्षक माना जाता है. इस महल में मंडप है जहाँ से सीढ़ियाँ अमर सागर झील की ओर जाती हैं। पर्यटक इस पांच मंजिला इमारत की दीवारों पर आकर्षक भित्ति चित्र देख सकते हैं। इमारत के परिसर के अंदर कई तालाबकुएं और एक शिव मंदिर हैं। इस तालाब के कि‍नारे 1871 में बाफना हि‍म्‍मत राम ने एक बहुत सुन्‍दर जैन मंदि‍र का नि‍र्माण कराया था। 


धूप में लोगों के स्वागत के लि‍ए ढोल बजाते  बच्चे 

जब हम मंदि‍र पहुंचे तो ठीक बाहर दो बच्‍चे सड़क पर बैठे थेजि‍न्‍होंने ढोल बजाकर हमारा स्‍वागत कि‍या। अंदर जाते ही सबसे पहले एक खूबसूरत फूलों वाला बागीचा मि‍ला। अंदर भगवान आदि‍श्‍वर का दो मंजि‍ला जैन मंदि‍र है। बेहद खूबसूरत। यहां के स्‍थापत्‍य में हिन्दू -मुगल शैली का सामजंस्‍य है। मंदि‍र के गवाक्षबरामदों पर उत्‍कीर्ण अलंकरणझरोखें बेहद आकर्षक है।


खूबसूरत नक्‍काशीदार मंदि‍र 

ऊपर झरोखे से ही हमने अमरसागर झील देखी । सुंदर शांत। वहां पानी के पक्षी ‘जलदुब्बियों’  का पानी में डूब कर अपना भोजन तलाशने का करतब देखते रहे हम।
हमें देखकर कुछ बच्‍चे नीचे जमा हो गए। उन्‍होंने आवाज लगाई..’गाना सुनोगे आप लोग’। हमने कहा सुनाओ। मुझे लगा वो राजस्‍थानी लोक संगीत सुनाएंगे पर उन्‍होंने ‘’परदेशी...परदेशी जाना नहीं’’ गाना सुनाना शुरू कि‍या तो हमें जोर की हंसी आई।
एक गाना सुनने के बाद हमने मना कर दि‍या उन्‍हें गाने से, और झील की खूबसूरती निहारने लगे।


मंदि‍र के बाहर बबूल का पेड़ 
 लेक के अंदर चबूतरे बने हुए थे। ऐसा लगा जैसे तब राजा शाम को तालाब के बीच जाकर शांति‍ के कुछ पल गुजारते थे। अब हम बाहर नि‍कले तो गीत गाने वाले बच्‍चे इंतजार करते मि‍ले। उन्‍हें कुछ पैसे दि‍ए तो वो चले गए। हमने वहां बबूल ने पेड़ के नीचे एक थड़ी पर चाय पी। फि‍र नि‍कले।

थोड़ी ही दूर पर सड़क की दाहि‍नी तरफ मि‍ट्टी का बड़ा सजा-संवरा मकान दि‍खा। ड्राइवर ने बताया ये गांव बनाया गया है ताकि‍ वि‍देशी पर्यटक आकर गांवों कैसा होता है वो देखे। हमने नजर भर देखा फूस की बनी खूबसूरत झोपड़ी के कुछ फोटो लिए वहां के , और और आगे नि‍कल गए...कुलधरा के लि‍ए। 

2 comments:

शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " पप्पू की संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

kuldeep thakur said...

आपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 26/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 284 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।