Wednesday, June 4, 2014

अमलतास वाले शहर ने.......


बरसों इंतजार
आया
एक पल हाथ
फि‍र
बि‍छड़ गया
जो याद रह गया
साथ रह गया
वो
दूजा पल था

पूरी जमापूंजी
बस
दो लम्‍हें
एक तेरा आना
और दूसरा
चले जाना...

बीच का वक्‍त
न तुझे मि‍ला
न मेरे साथ आया
उस
अमलतास वाले शहर ने
रख लि‍या गि‍रवी

अब
कर्जदार हैं हमदोनों
उस शहर के
मगर लेना है वापस
वो कीमती लम्‍हें
चलेंगे कि‍सी रोज
जब बंधक छुड़ाने लायक
हम हो जाएं

जाना
पहली बार
कि‍ इंसान ही नहीं
शहरें भी करती है
कारोबार
सूमचा वक्‍त
मि‍लन का
बि‍सरा दि‍या जेहन से

क्‍या कि‍स्‍मत ने
बि‍छोह की स्‍याही से
लि‍खे थे
मि‍लन के पल
याद है बस
तेरा आना और चले जाना..............


3 comments:

Pratibha Verma said...

अब
कर्जदार हैं हमदोनों
उस शहर के
मगर लेना है वापस
वो कीमती लम्‍हें
चलेंगे कि‍सी रोज
जब बंधक छुड़ाने लायक
हम हो जाएं

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

Asha Lata Saxena said...

बहुत शानदार भाव कर्जदार हैं हम दौनो |

संजय भास्‍कर said...

वो कीमती लम्‍हें
चलेंगे कि‍सी रोज
जब बंधक छुड़ाने लायक
हम हो जाएं

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।