Tuesday, January 22, 2013

हैरां हूं मैं....


हैरां हूं मैं
वो कौन सी दुनि‍या है
जहां तुम्‍हारा आशि‍याना है
तुमने जकड़ा है यादों को
या यादों को मोहब्‍बत है तुमसे

गुजरे लम्‍हों का जर्रा-जर्रा
बावस्‍ता है फकत तुमसे

बताओ जरा
पांव के नीचे की नर्म दूब
तुम्‍हारे स्‍पर्श से मुस्‍कराती है या
फूलों की पंखुड़ि‍यों की खुश्‍बू
तुम्‍हारी सांसो से होकर आती है

क्‍या है वो तुममें
जिसने तुम्‍हें डोर
और मुझे पतंग बना दि‍या.....

9 comments:

रविकर said...

वाह-
बढ़िया अभिव्यक्ति-
आभार आदरेया ||

Unknown said...

bhavo se santript sundar prastuti ************^^^^^^^^^^***************गुजरे लम्‍हों का जर्रा-जर्रा
बावस्‍ता है फकत तुमसे

suresh swapnil said...

आप की गज़ल बहुत अच्छी है.

Pratibha Verma said...

बहुत खुबसूरत ...बधाई।।

Darshan Darvesh said...

इतना ऊंचा एहसास और फिर भी डूबा हुआ , वह...!

शारदा अरोरा said...

narm ahsason se saji kavita ..

संध्या शर्मा said...

हैरां हूं मैं
बहुत खूबसूरत दुनि‍या है
जहां तुम्‍हारा आशि‍याना है...
बहुत ख़ुश हूँ यहाँ आकर... शुक्रिया

mridula pradhan said...

क्‍या है वो तुममें
जिसने तुम्‍हें डोर
और मुझे पतंग बना दि‍या.....wah.....bahot sunder.

डॉ एल के शर्मा said...

क्‍या है वो तुममें
जिसने तुम्‍हें डोर
और मुझे पतंग बना दि‍या....गज़ब !